चोटी की पकड़–88
चौबीस
खजांची और मुन्ना पीपल के पास गए। खजांची ने गंभीर होकर कहा, "जब कि हमने काम कर दिया है, एक काम हमारा तुम कर दो या रकम वापस करो। अब बात दो की नहीं रही।"
मुन्ना, "कौन-सा काम है?"
"पहले हम बता दें, तुम्हारा-हमारा फायदा कहाँ है।
हमको नहीं मालूम, रुपयों का तुमने क्या किया। यह बता सकते हैं कि जिनकी वजह इतना रुपया निकाल सकती हो, उनसे सरकार बड़ी है, वहाँ से और फायदा उठा सकती हो।
अगर हमारी बात पर न आईं, तो मजबूरन् यह राज सरकारी आदमी को देना होगा। नहीं तो बचत नहीं। जिसके पास रुपया है, चोर साबित होगा।
सरकार आसानी से पता लगा लेगी, रुपया रानी के पास है या नहीं। अगर न निकला तो तुम्हारा क्या हाल होगा, समझ लो। इस मामले को लेकर सरकार के पास हमारे जाने के यही माने होते हैं कि हमारा कुसूर नहीं, ताली चुरायी गई।'
"यह कौन कहता है कि नहीं चुरायी गई, कहो मैं भी कहूँ, हाँ लेकिन मैंने चुरायी, यह तुम्हें कैसे मालूम हुआ? कैसे कहोगे, फलाँ ने चुरायी? सुनो, तिजोड़ी के फिर से खुलने का सबूत गुज़र. चुका है। इतने उड़ाके न बनो।
तुम नप चुके। मेरी के मानी, रानी की पकड़ है, और तुम्हारी-बचत के लिए सरकार की। क्या रानी अपना सत्यानाश करा लेंगी? तुमसे पहले यहाँ दगेगी। यहीं रहना है।
इस आग से सारा खानदान जल जाएगा। फिर, माने रहने पर, वह हासिल हो सकता है। रुपए खैर मिलेंगे ही। काम भी सँवार दिया जा सकता है।"